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"सुंदर कोमल सपनों की बारात / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ <br>
 
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ <br>
 
धूप आँखों तक आ पहुँची है रात गुज़र गई जानाँ<br><br>  
 
धूप आँखों तक आ पहुँची है रात गुज़र गई जानाँ<br><br>  

18:54, 25 मई 2009 का अवतरण

सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
धूप आँखों तक आ पहुँची है रात गुज़र गई जानाँ

भोर समय तक जिसने हमें बाहम उलझाये रखा
वो अलबेली रेशम जैसी बात गुज़र गई जानाँ

सदा की देखी रात हमें इस बार मिली तो चुप के से
ख़ाली हाथ पे रख के क्या सौग़ात गुज़र गई जानाँ

किस कोंपल की आस में अब तक वैसे ही सर-सब्ज़ हो तुम
अब तो धूप का मौसम है बरसात गुज़र गई जानाँ

लोग न जाने किन रातों की मुरादें माँगा करते हैं
अपनी रात तो वो जो तेरे साथ गुज़र गई जानाँ