भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में / शहरयार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | [[Category: | + | |रचनाकार=शहरयार |
− | + | }} | |
− | + | [[Category:ग़ज़ल]] | |
− | + | ||
− | + | ||
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें <br> | ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें <br> | ||
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें <br><br> | ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें <br><br> |
20:28, 25 मई 2009 का अवतरण
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें
याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें
टिप्पणी:
इस गज़ल को शहरयार ने फ़िल्म "उमराव जान" के लिये लिखा था। फ़िल्म में नायिका उमराव जान एक शायरा भी हैं और उनका तख़ल्लुस "अदा" है।