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"जब बीड़ी से धुवाँ उठेगा / केशव शरण" के अवतरणों में अंतर
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चित्रात्मकता का अप्रतिम प्रतिमान
रक्तिम लपटॊं में घिरा
शाम का आसमान
पर वे इसका आनन्द नहीं उठा सकते
तलब है बीड़ी की
जिसे वे उन लपटॊं से नहीं जला सकते
माचिस की डिबिया भूल आए हैं
यह ध्यान तब आया है
जब नदी के कूल आए हैं
लपटॊम से घिरे चित्रमौ आसमान से
उनका मन तभी जुड़ेगा
जब उनकी बीड़ी से धुवाँ उठेगा