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"जब बीड़ी से धुवाँ उठेगा / केशव शरण" के अवतरणों में अंतर

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18:52, 21 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

चित्रात्मकता का अप्रतिम प्रतिमान
रक्तिम लपटॊं में घिरा
शाम का आसमान
पर वे इसका आनन्द नहीं उठा सकते
तलब है बीड़ी की
जिसे वे उन लपटॊं से नहीं जला सकते

माचिस की डिबिया भूल आए हैं
यह ध्यान तब आया है
जब नदी के कूल आए हैं

लपटों से घिरे चित्रमय आसमान से
उनका मन तभी जुड़ेगा
जब उनकी बीड़ी से धुवाँ उठेगा