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"चांद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिये / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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− | हर | + | हर जगह आपका क़िस्सा हैं जहाँ से सुनिये |
+ | सबको आता नहीं दुनिया को सजाकर जीना <br> | ||
+ | ज़िन्दगी क्या हैं मुहब्बत की ज़बां से सुनिये | ||
− | + | क्या ज़रूरी है कि हर पर्दा उठाया जाये <br> | |
− | + | मेरे हालात भी अपने ही मकाँ से सुनिये | |
+ | मेरी आवाज़ ही पर्दा हैं मेरे चेहरे का <br> | ||
+ | मैं हूँ ख़ामोश जहाँ , मुझको वहाँ से सुनिये | ||
− | + | कौन पढ़ सकता हैं पानी पे लिखी तहरीरें <br> | |
− | + | किसने क्या लिक्ख़ा हैं ये आब-ए-रवाँ से सुनिये | |
− | + | चाँद में कैसे हुई कैद किसी घर की खुशी <br> | |
− | + | ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ाँ से सुनिये | |
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02:48, 13 अप्रैल 2008 का अवतरण
शायर: निदा फ़ाज़ली
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चाँद से फूल से या मेरी ज़ुबाँ से सुनिये
हर जगह आपका क़िस्सा हैं जहाँ से सुनिये
सबको आता नहीं दुनिया को सजाकर जीना
ज़िन्दगी क्या हैं मुहब्बत की ज़बां से सुनिये
क्या ज़रूरी है कि हर पर्दा उठाया जाये
मेरे हालात भी अपने ही मकाँ से सुनिये
मेरी आवाज़ ही पर्दा हैं मेरे चेहरे का
मैं हूँ ख़ामोश जहाँ , मुझको वहाँ से सुनिये
कौन पढ़ सकता हैं पानी पे लिखी तहरीरें
किसने क्या लिक्ख़ा हैं ये आब-ए-रवाँ से सुनिये
चाँद में कैसे हुई कैद किसी घर की खुशी
ये कहानी किसी मस्ज़िद की अज़ाँ से सुनिये