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"होकर अयाँ वो ख़ुद को छुपाये हुए-से हैं / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

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होकर अयाँ वो ख़ुद को छुपाये हुए-से हैं  
 
होकर अयाँ वो ख़ुद को छुपाये हुए-से हैं  
 
अहले-नज़र ये चोट भी खाये हुए-से हैं  
 
अहले-नज़र ये चोट भी खाये हुए-से हैं  
  
वो तूर हो कि हश्रे-दिल अफ़्सुर्दगाने-इश्क<sup>1</sup>
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वो तूर हो कि हश्रे-दिल अफ़्सुर्दगाने-इश्क<ref>प्रेम में दुखी लोग</ref>
 
हर अंजुमन में आग
 
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लगाये-हुए-से    हैं  
 
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आये-हुए-से    हैं
 
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ये क़ुर्बो-बोद<sup>2</sup> भी हैं सरासर फ़रेबे-हुस्ने  
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वो आके भी '''फ़िराक़''' न आए-हुए-से हैं  
 
वो आके भी '''फ़िराक़''' न आए-हुए-से हैं  
 
 
1- प्रेम में दुखी लोग, 2- सा‍मीप्य एवं दूरी
 
 
 
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19:10, 13 सितम्बर 2009 का अवतरण

  
होकर अयाँ वो ख़ुद को छुपाये हुए-से हैं
अहले-नज़र ये चोट भी खाये हुए-से हैं

वो तूर हो कि हश्रे-दिल अफ़्सुर्दगाने-इश्क<ref>प्रेम में दुखी लोग</ref>
हर अंजुमन में आग
लगाये-हुए-से हैं

सुब्हे-अज़ल को यूँ ही ज़रा मिल गयी थी आंख
वो आज तक निगाह
चुराये-हुए-से हैं

हम बदगु़माने-इश्क तेरी बज़्मे - नाज से
जाकर भी तेरे सामने
आये-हुए-से हैं

ये क़ुर्बो-बोद<ref>सा‍मीप्य एवं दूरी</ref> भी हैं सरासर फ़रेबे-हुस्ने
वो आके भी फ़िराक़ न आए-हुए-से हैं

शब्दार्थ
<references/>