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"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता / शहरयार" के अवतरणों में अंतर
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(ye Nida Fazli sahib ki hai..!!) |
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16:18, 17 सितम्बर 2007 का अवतरण
लेखक: शहरयार
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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता
तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता
ye Nida Fazli sahib ki hai..!