भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता / शहरयार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(ye Nida Fazli sahib ki hai..!!) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो (Reverted edits by 59.94.151.59 (Talk); changed back to last version by Lalit Kumar) |
||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो <br> | तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो <br> | ||
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता <br><br> | जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता <br><br> | ||
− | |||
− |
14:49, 19 सितम्बर 2007 का अवतरण
लेखक: शहरयार
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबाँ नहीं मिलता
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता
तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता