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00:21, 3 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
तिमिर में वे पदचिह्न मिले!
युग-युग का पंथी आकुल मन,
बाँध रहा पथ के रजकण चुन;
श्वासों में रूँधे दुख के पल
बन बन दीप चले!
अलसित तन में, विद्युत-सी भर,
वर बनते मेरे श्रम-सीकर;
एक एक आँसू में शत शत
शतदल-स्वप्न खिले!
सजनि प्रिय के पदचिह्न मिले!