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(क्या आंतरिक लिंक दिया जा सकता है।: नया विभाग)
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सादर
 
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--अमित ०३:४३, ९ अक्तूबर २००९ (UTC)
 
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== आंतरिक लिंक ==
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अमित जी,
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१) आंतरिक लिंक ज़रूर दिये जाने चाहिये। एक ही रचना अगर कई संग्रहों/संकलनों का हिस्सा है तो उसे बार-बार टाइप नहीं किया जाना चाहिये।
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२) आपके सवाल का दूसरा भाग ज़रा मुश्किल है। आप आंतरिक लिंक तो ज़रूर दीजीये लेकिन फ़िलहाल ऐसी सुविधा नहीं है कि आप जिस संग्रह से उस रचना तक पँहुचे हैं उस संग्रह का लिंक अपने आप उस रचना के पन्ने पर आ जाये। यदि रचना केवल एक ही संग्रह का हिस्सा है तो यह करना संभव है लेकिन एक से अधिक संग्रहों के केस में अभी ऐसा प्रावधान नहीं है। इसलिये अभी के लिये आप ऐसा कीजिये कि यदि रचना एक से अधिक संग्रहों का हिस्सा है तो उस रचना के पन्ने से "संग्रह" का लिंक हटा दीजिये। इससे पाठक "बैक" बटन का प्रयोग कर उसी संग्रह पर वापस जा सकेंगे जहाँ से वे उस रचना तक पँहुचे थे। इस समस्या के बेहतर समाधान के बारे में मैं विचार करूँगा।
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सादर
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--[[सदस्य:सम्यक|सम्यक]] १५:४३, ९ अक्तूबर २००९ (UTC)

21:13, 9 अक्टूबर 2009 का अवतरण

मैने पूरा पृष्ठ लिखने के बाद जब बदलाव सहेजें पर क्लिक किया तो अनुमति त्रुटि के साथ पूरा मैटर गायब हो गया जबकि मैं लोगिन भी था। कृपया सहायता करें जिससे श्रम व्यर्थ न हो।


प्रिय अमिताभ जी! कभी-कभी ऐसा तब हो जाता है, जब इंटेरनेट कनेक्शन बीच में ही टूट जाता है। जिस दौरान आप मैटर टाईप कर रहे थे, उस्के बीच में ही कभी इंटरनेट कनेक्शन बन्द हो गया। इस वज़ह से आपकी वो सामग्री भी गायब हो गई जो कनेक्शन टूटने से पहले आपने सहेजी नहीं थी। इस परेशानी से बचने के लिए ’बदलाव सहेजें’ बटन दबाने से पहले सारी टाईप सामग्री को कॉपी कर लेना चाहिए। अगर सामग्री ग़ायब होती है तो आप उसे पुनः कॉपी से निकाल सकते हैं। सादर अनिल जनविजय

इसमें अनडू की भी व्यवस्था करें

एक ग़ज़ल पूरी टाइप करने के बाद उसे सेव भी कर लिया था लेकिन शीर्षक में कुछ त्रटि थी उसे दूर करने के लिये वहाँ पर सुधार कर सेहेजा तो पूरी गज़ल ही गायब हो गयी और शीर्षक प्रदर्शित करने लगा कि यह पन्ना अभी बना नही है। लगता है अब ऑफलाइन ही टाइप करके जोड़ना पड़ेगा। सादर अमित बाद में मैने अपने योगदान में देखा तो पुराना उद्धरण पूरा का पूरा पड़ा था जिसे मैंने तुरन्त कॉपी कर लिया और पेस्ट कर दिया। श्रम तो बच गया लेकिन यह गड़बड़झाला समझ में नहीं आया। अमित

प्रिय अमित जी! यह ज़रूरी है कि शीर्षक में कुछ बदलाव करने से पहले उस शीर्षक के अन्तर्गत टाईप किया गया पूरा मैटर वहाँ से उठाकर कहीं और सुरक्षित कर लें। तभी शीर्षक में बदलाव करें। --अनिल जनविजय ०६:२७, २५ सितम्बर २००९ (UTC)

कविता कोश में वार्तालाप

नमस्कार,


कविता कोश में सदस्यों के बीच वार्तालाप को सुचारु बनाने के उद्देशय से मैनें एक लेख लिखा है। कृपया इसे पढ़ें और इसके अनुसार कोश में उपलबध वार्तालाप सुविधाओं का प्रयोग करें। हो सकता है कि आप इन सुविधाओं का प्रयोग पहले से करते रहें हों -फिर भी आपको यह लेख पूरा पढ़ना चाहिये ताकि यदि आपको किसी सुविधा के बारे में पता नहं है या आप इन सुविधाओं का प्रयोग करने में कोई त्रुटि कर रहे हैं तो आपको उचित जानकारी मिल सके।


यह लेख सदस्य वार्ता और चौपाल का प्रयोग नाम से उपलब्ध है।


शुभाकांक्षी

--सम्यक १६:११, २६ सितम्बर २००९ (UTC)

क्या आंतरिक लिंक दिया जा सकता है।

मेरा प्रश्न है कि यदि किसी कवि की कोई सामग्री कविताकोश में अन्यत्र उपलब्ध तो क्या उसका लिंक देकर दुबारा लिखने से बचा जा सकता है। जैसे किसी की एक ही कविता दो या अधिक संकलनों में संग्रहीत है ऐसी स्थिति में एक संग्रह में पूरी रचना लिखने के बाद दूसरे संग्रह में जब उसका क्रम आये तो केवल पहले वाले का लिंक दे दिया जाय और वहाँ से पुनः यथास्थान लौटने की सुविधा भी हो। मेरा अनुमान है कि ऐसी व्यवस्था अवश्य होगी। कृपया बतायें इसे किस प्रकार किया जा सकता है। सादर --अमित ०३:४३, ९ अक्तूबर २००९ (UTC)

आंतरिक लिंक

अमित जी,


१) आंतरिक लिंक ज़रूर दिये जाने चाहिये। एक ही रचना अगर कई संग्रहों/संकलनों का हिस्सा है तो उसे बार-बार टाइप नहीं किया जाना चाहिये।


२) आपके सवाल का दूसरा भाग ज़रा मुश्किल है। आप आंतरिक लिंक तो ज़रूर दीजीये लेकिन फ़िलहाल ऐसी सुविधा नहीं है कि आप जिस संग्रह से उस रचना तक पँहुचे हैं उस संग्रह का लिंक अपने आप उस रचना के पन्ने पर आ जाये। यदि रचना केवल एक ही संग्रह का हिस्सा है तो यह करना संभव है लेकिन एक से अधिक संग्रहों के केस में अभी ऐसा प्रावधान नहीं है। इसलिये अभी के लिये आप ऐसा कीजिये कि यदि रचना एक से अधिक संग्रहों का हिस्सा है तो उस रचना के पन्ने से "संग्रह" का लिंक हटा दीजिये। इससे पाठक "बैक" बटन का प्रयोग कर उसी संग्रह पर वापस जा सकेंगे जहाँ से वे उस रचना तक पँहुचे थे। इस समस्या के बेहतर समाधान के बारे में मैं विचार करूँगा।


सादर

--सम्यक १५:४३, ९ अक्तूबर २००९ (UTC)