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"पावतो अहार मन भावतो अधिक / अज्ञात कवि (रीतिकाल)" के अवतरणों में अंतर
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पावतो अहार मन भावतो अधिक , | पावतो अहार मन भावतो अधिक , |
23:19, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
पावतो अहार मन भावतो अधिक ,
एक सेर अरहरि की जु दाल और दलतो ।
चूल्हो न जरायो तापै माँगत है भोजन ,
सरम नाहिँ तोको करि कारो मुख टलतो ।
तेरी हौँ गुलाम केधौँ मेरो तैँ गुलाम ,
करु काम न अराम को इहाँ है फल फलतो ।
कहत लुगाई ऎरे पति पशु मेरे ,
तोपै लादती गरभ जो पै मेरो बस चलतो ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।