भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घटा / इसाक अश्क" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लेखक: [[इसाक अश्क]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:इसाक अश्क]]
+
{{KKRachna
[[Category:कविताएँ]]
+
|रचनाकार=इसाक अश्क
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKCatNavgeet}}
 +
<poem>
 +
दो शब्द चित्र
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
+
'''(एक)'''
  
दो शब्द चित्र<br><br>
+
बारिशों के पल  
 
+
नया  
'''(एक)''' <br><br>
+
जादू जगाते हैं।  
 
+
बारिशों के पल <br>
+
नया <br>
+
जादू जगाते हैं। <br><br>
+
 
    
 
    
तितलियां <br>
+
तितलियाँ
लेकर उड़ीं- <br>
+
लेकर उड़ीं-  
संयम हवाओं में, <br><br>
+
संयम हवाओं में,  
 
    
 
    
खिंच गए <br>
+
खिंच गए  
सौ-सौ धनुष- <br>
+
सौ-सौ धनुष-  
दृष्टि, दिशाओं में, <br><br>
+
दृष्टि, दिशाओं में,  
 
    
 
    
जुगनुओं से <br>
+
जुगनुओं से  
याद के <br>
+
याद के  
खण्डहर सजाते हैं। <br><br>
+
खण्डहर सजाते हैं।  
 
    
 
    
गंध बनकर <br>
+
गंध बनकर  
डोलती- <br>
+
डोलती-  
काया गुलाबों की, <br>
+
काया गुलाबों की,
पंक्तियां <br>
+
पंक्तियाँ
जीवित हुई- <br>
+
जीवित हुई-  
जैसे किताबों की, <br><br>
+
जैसे किताबों की,  
 
    
 
    
गाछ-भी <br>
+
गाछ-भी  
यह देखकर <br>
+
यह देखकर  
ताली बजाते हैं। <br><br>
+
ताली बजाते हैं।  
 
    
 
    
'''(दो)''' <br><br>
+
'''(दो)'''  
  
रंग <br>
+
रंग  
खुशबू-घटा <br>
+
खुशबू-घटा  
क्या नहीं आजकल। <br>
+
क्या नहीं आजकल।  
रैलियां <br>
+
रैलियाँ
जुगनुओं की- <br>
+
जुगनुओं की-  
निकलने लगीं, <br>
+
निकलने लगीं,  
हर दिशा <br>
+
हर दिशा  
वस्त्र अपने- <br>
+
वस्त्र अपने-
बदलने लगीं, <br><br>
+
बदलने लगीं,  
 
    
 
    
सूर <br>
+
सूर  
उलझी जटा<br>
+
उलझी जटा
क्या नहीं आजकल। <br><br>
+
क्या नहीं आजकल।  
 
    
 
    
द्वार तक हिम-हवा- <br>
+
द्वार तक हिम-हवा-  
थरथराते हुए, <br>
+
थरथराते हुए,  
आ-गयी <br>
+
आ-गयी  
गीत-गोविन्द- <br>
+
गीत-गोविन्द-  
गाते हुए, <br><br>
+
गाते हुए,  
 
    
 
    
छंद <br>
+
छंद  
धनुयी छटा <br>
+
धनुयी छटा
क्या नहीं आजकल।<br><br>
+
क्या नहीं आजकल।
 +
<poem>

20:09, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

दो शब्द चित्र

(एक)

बारिशों के पल
नया
जादू जगाते हैं।
   
तितलियाँ
लेकर उड़ीं-
संयम हवाओं में,
   
खिंच गए
सौ-सौ धनुष-
दृष्टि, दिशाओं में,
   
जुगनुओं से
याद के
खण्डहर सजाते हैं।
   
गंध बनकर
डोलती-
काया गुलाबों की,
पंक्तियाँ
जीवित हुई-
जैसे किताबों की,
   
गाछ-भी
यह देखकर
ताली बजाते हैं।
   
(दो)

रंग
खुशबू-घटा
क्या नहीं आजकल।
रैलियाँ
जुगनुओं की-
निकलने लगीं,
हर दिशा
वस्त्र अपने-
बदलने लगीं,
   
सूर
उलझी जटा
क्या नहीं आजकल।
   
द्वार तक हिम-हवा-
थरथराते हुए,
आ-गयी
गीत-गोविन्द-
गाते हुए,
   
छंद
धनुयी छटा
क्या नहीं आजकल।