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17:32, 10 दिसम्बर 2006 का अवतरण

लेखक: इसाक अश्क

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दो शब्द चित्र

(एक)

बारिशों के पल
नया
जादू जगाते हैं।

तितलियां
लेकर उड़ीं-
संयम हवाओं में,

खिंच गए
सौ-सौ धनुष-
दृष्टि, दिशाओं में,

जुगनुओं से
याद के
खण्डहर सजाते हैं।

गंध बनकर
डोलती-
काया गुलाबों की,
पंक्तियां
जीवित हुई-
जैसे किताबों की,

गाछ-भी
यह देखकर
ताली बजाते हैं।

(दो)

रंग
खुशबू-घटा
क्या नहीं आजकल।
रैलियां
जुगनुओं की-
निकलने लगीं,
हर दिशा
वस्त्र अपने-
बदलने लगीं,

सूर
उलझी जटा
क्या नहीं आजकल।

द्वार तक हिम-हवा-
थरथराते हुए,
आ-गयी
गीत-गोविन्द-
गाते हुए,

छंद
धनुयी छटा
क्या नहीं आजकल।