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"अनुभव / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर

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'''रचनाकाल : 1992 साबरमती एक्सप्रेस'''
 
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19:27, 27 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

अनुभव की आँखें
सब कुछ देख लेती है
वह भी जो नहीं दिखाना चाहते है लोग।

अनुभव की उँगलियाँ
वह तक छू लेती हैं
जिसे सबसे ज़्यादा छुपाना चाहते हैं लोग

अनुभव की जीभ
जीभ के क्वाँरे स्वाद को पहचानती हैं।

अनुभव के अंग
जानते हैं अनुभवी अंगो की भाषा

अनुभव से
कुछ भी नहीं छिपाया जा सकता
छिपता नहीं है अनुभव से कुछ भी

नंगा है हर झूठ अनुभव के आगे
अनुभव के आगे नंगी है हर सच्चाई।


रचनाकाल : 1992 साबरमती एक्सप्रेस