भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब वो झोंके कहाँ सबा जैसे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ |संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़ }} {{KKCatGhazal}} <poem…) |
|||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
आग है शह्र की हवा जैसे | आग है शह्र की हवा जैसे | ||
− | शब <ref>रात्रि</ref> सुलगती है दोपहर की तरह | + | शब<ref>रात्रि</ref> सुलगती है दोपहर की तरह |
− | चाँद ,सूरज से जल-बुझा जैसे | + | चाँद, सूरज से जल-बुझा जैसे |
मुद्दतों बाद भी ये आलम<ref>दशा</ref> है | मुद्दतों बाद भी ये आलम<ref>दशा</ref> है | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
इस तरह मंज़िलों से हूँ महरूम<ref>वंचित</ref> | इस तरह मंज़िलों से हूँ महरूम<ref>वंचित</ref> | ||
− | मैं शरीक़े-सफ़र <ref> यात्रा का साथी</ref> न था जैसे | + | मैं शरीक़े-सफ़र<ref> यात्रा का साथी</ref> न था जैसे |
अब भी वैसी है दूरी-ए-मंज़िल<ref>गन्तव्य</ref> | अब भी वैसी है दूरी-ए-मंज़िल<ref>गन्तव्य</ref> | ||
− | साथ | + | साथ चलता हो रास्ता जैसे |
− | + | ||
इत्तिफ़ाक़न<ref>सहसा, अकस्मात् </ref> भी ज़िंदगी में ‘फ़राज़’ | इत्तिफ़ाक़न<ref>सहसा, अकस्मात् </ref> भी ज़िंदगी में ‘फ़राज़’ | ||
− | दोस्त मिलते नहीं ‘ज़िया’ <ref>प्रकाश(‘फ़राज़’ ने अपने मित्र जियाउद्दीन ‘ज़िया’ के किए संकेत किया है)</ref> जैसे | + | दोस्त मिलते नहीं ‘ज़िया’<ref>प्रकाश(‘फ़राज़’ ने अपने मित्र जियाउद्दीन ‘ज़िया’ के किए संकेत किया है)</ref> जैसे |
</poem> | </poem> | ||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
11:46, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण
अब वो झोंके कहाँ सबा<ref>हवा</ref> जैसे
आग है शह्र की हवा जैसे
शब<ref>रात्रि</ref> सुलगती है दोपहर की तरह
चाँद, सूरज से जल-बुझा जैसे
मुद्दतों बाद भी ये आलम<ref>दशा</ref> है
आज ही तू जुदा हुआ जैसे
इस तरह मंज़िलों से हूँ महरूम<ref>वंचित</ref>
मैं शरीक़े-सफ़र<ref> यात्रा का साथी</ref> न था जैसे
अब भी वैसी है दूरी-ए-मंज़िल<ref>गन्तव्य</ref>
साथ चलता हो रास्ता जैसे
इत्तिफ़ाक़न<ref>सहसा, अकस्मात् </ref> भी ज़िंदगी में ‘फ़राज़’
दोस्त मिलते नहीं ‘ज़िया’<ref>प्रकाश(‘फ़राज़’ ने अपने मित्र जियाउद्दीन ‘ज़िया’ के किए संकेत किया है)</ref> जैसे
शब्दार्थ
<references/>