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"दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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20:01, 27 जनवरी 2008 का अवतरण
दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा
यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें
थक थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गये
तेरा पता न पायें तो नाचार क्या करें
क्या शमा के नहीं है हवा ख़्वाह अहल-ए-बज़्म
हो ग़म ही जां गुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें