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"वो लोग ही हर दौर में महबूब रहे हैं / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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20:43, 13 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
वो लोग ही हर दौर में महबूब रहे हैं
जो इश्क़ में तालिब नहीं मतलूब रहे हैं
तूफ़ानों की आवाज़ तो आती नहीं लेकिन
लगता है सफ़ीने से कहीं डूब रहे हैं
उनको न पुकारों गमेदौरां के लक़ब से
जो दर्द किसी नाम से मंसूब रहे हैं
हम भी तेरी सूरत के परस्तार हैं लेकिन
कुछ और भी चेहरे हमें मरगूब रहे हैं
इस अहदे बसीरत में भी नक्क़ाद हमारे
हर एक बड़े नाम से मरऊब रहे हैं