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"जासों प्रीति ताहि निठुराई / घनानंद" के अवतरणों में अंतर

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कैसे करि जिय की जरनि सो जताइये।<br>
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जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह,
महा निरदई दई कैसें कै जिवाऊँ जीव,<br>
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कैसे करि जिय की जरनि सो जताइये।
बेदन की बढ़वारि कहाँ  लौं दुराइयै।<br>
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महा निरदई दई कैसें कै जिवाऊँ जीव,
दुख को बखान करिबै कौं रसना कै होति, <br>
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बेदन की बढ़वारि कहाँ  लौं दुराइयै।
ऐपै कहूँ बाको मुख देखन न पाइयै।<br>
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दुख को बखान करिबै कौं रसना कै होति,
रैन दिन चैन को न लेस कहूँ पैये भाग,<br>
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ऐपै कहूँ बाको मुख देखन न पाइयै।
आपने ही ऐसे दोष काहि धौं लगाइयै।। 5 ।।<br>
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रैन दिन चैन को न लेस कहूँ पैये भाग,
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आपने ही ऐसे दोष काहि धौं लगाइयै।
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10:59, 16 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

जासों प्रीति ताहि निठुराई सों निपट नेह,
कैसे करि जिय की जरनि सो जताइये।
महा निरदई दई कैसें कै जिवाऊँ जीव,
बेदन की बढ़वारि कहाँ लौं दुराइयै।
दुख को बखान करिबै कौं रसना कै होति,
ऐपै कहूँ बाको मुख देखन न पाइयै।
रैन दिन चैन को न लेस कहूँ पैये भाग,
आपने ही ऐसे दोष काहि धौं लगाइयै।