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"कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंजनि की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
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कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंजनि की, | कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंजनि की, |
11:25, 16 जनवरी 2010 का अवतरण
कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंजनि की,
गुंजनि की माला की मिसाल छवि छावै ना ।
कहै रतनाकर रतन मैं किरीट अच्छ,
मोर-पच्छ-अच्छ-लच्छ असहू सु-भावै ना ॥
जसुमति मैया की मलैया अरु माखन कौ,
कामधेनु गोरस हूँ गूढ़ गुन आवै ना ।
गोकुल की रज के कनूका औं तिनूका सम,
संपति त्रिलोक की बिलोकन मैं आवै ना ॥10॥