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"प्रेम-नेम निफल निवारि उर-अंतर तैं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
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प्रेम-नेम निफल निवारि उर-अंतर तैं, | प्रेम-नेम निफल निवारि उर-अंतर तैं, | ||
− | ब्रह्मज्ञान आनंद-निधान भरि लैहैं हम । | + | ::ब्रह्मज्ञान आनंद-निधान भरि लैहैं हम । |
कहै रतनाकर सुधाकर-मुखीन-ध्यान, | कहै रतनाकर सुधाकर-मुखीन-ध्यान, | ||
− | आँसुनि सौ धोइ जोति जोइ जरि लैहै हम ॥ | + | ::आँसुनि सौ धोइ जोति जोइ जरि लैहै हम ॥ |
आवो एक बार धारि गोकुल-गलि की धूरि, | आवो एक बार धारि गोकुल-गलि की धूरि, | ||
− | तब इहिं नीति को प्रतीत धरि लैहैं हम । | + | ::तब इहिं नीति को प्रतीत धरि लैहैं हम । |
मन सौं, करेजै सौं, स्रवन-सिर आँखिनि सौं, | मन सौं, करेजै सौं, स्रवन-सिर आँखिनि सौं, | ||
− | ऊधव तिहारी सीख भीख करि लैं ह्वैं हम ॥18॥ | + | ::ऊधव तिहारी सीख भीख करि लैं ह्वैं हम ॥18॥ |
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09:31, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण
प्रेम-नेम निफल निवारि उर-अंतर तैं,
ब्रह्मज्ञान आनंद-निधान भरि लैहैं हम ।
कहै रतनाकर सुधाकर-मुखीन-ध्यान,
आँसुनि सौ धोइ जोति जोइ जरि लैहै हम ॥
आवो एक बार धारि गोकुल-गलि की धूरि,
तब इहिं नीति को प्रतीत धरि लैहैं हम ।
मन सौं, करेजै सौं, स्रवन-सिर आँखिनि सौं,
ऊधव तिहारी सीख भीख करि लैं ह्वैं हम ॥18॥