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"हा! हा! इन्हैं रोकन कौं टोक न लगावौ तुम / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
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हा! हा! इन्हैं रोकन कौं टोक न लगावौ तुम, | हा! हा! इन्हैं रोकन कौं टोक न लगावौ तुम, | ||
− | बिसद-बिबेक ज्ञान गौरव-दुलारे ह्वै । | + | ::बिसद-बिबेक ज्ञान गौरव-दुलारे ह्वै । |
प्रेम रतनाकर कहत इमि ऊधव सौं, | प्रेम रतनाकर कहत इमि ऊधव सौं, | ||
− | थहरि करेजौ थामि परम दुखारे ह्वै ॥ | + | ::थहरि करेजौ थामि परम दुखारे ह्वै ॥ |
सीतल करत नैंकु हीतल हमारौ परि, | सीतल करत नैंकु हीतल हमारौ परि, | ||
− | बिषम-बियोग-ताप-समन पुचारे ह्वै । | + | ::बिषम-बियोग-ताप-समन पुचारे ह्वै । |
गोपिनि के नैन-नीर ध्यान-नलिका ह्वै धाइ, | गोपिनि के नैन-नीर ध्यान-नलिका ह्वै धाइ, | ||
− | दृगनि हमारै आइ छूटत फुहारे ह्वै ॥17॥ | + | ::दृगनि हमारै आइ छूटत फुहारे ह्वै ॥17॥ |
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09:33, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण
हा! हा! इन्हैं रोकन कौं टोक न लगावौ तुम,
बिसद-बिबेक ज्ञान गौरव-दुलारे ह्वै ।
प्रेम रतनाकर कहत इमि ऊधव सौं,
थहरि करेजौ थामि परम दुखारे ह्वै ॥
सीतल करत नैंकु हीतल हमारौ परि,
बिषम-बियोग-ताप-समन पुचारे ह्वै ।
गोपिनि के नैन-नीर ध्यान-नलिका ह्वै धाइ,
दृगनि हमारै आइ छूटत फुहारे ह्वै ॥17॥