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विरह-बिथा की कथा अकथ अथाह महा, | विरह-बिथा की कथा अकथ अथाह महा, | ||
− | कहत बनै न जो प्रबीन सुकबीनि सौं । | + | ::कहत बनै न जो प्रबीन सुकबीनि सौं । |
कहैं रतनाकर बुझावन लगे ज्यौं कान्ह, | कहैं रतनाकर बुझावन लगे ज्यौं कान्ह, | ||
− | ऊधौ कौं कहन-हेतु ब्रज-जुवतीनि सौं ॥ | + | ::ऊधौ कौं कहन-हेतु ब्रज-जुवतीनि सौं ॥ |
गहबरि आयौ गरौ भभरि अचानक त्यौं, | गहबरि आयौ गरौ भभरि अचानक त्यौं, | ||
− | प्रेम परयौ चपल चुचाइ पुतरीनि सौं । | + | ::प्रेम परयौ चपल चुचाइ पुतरीनि सौं । |
नैंकु कही बैननि, अनेक कही नैननि सौं, | नैंकु कही बैननि, अनेक कही नैननि सौं, | ||
− | रही-सही सोऊ कहि दीनी हिचकीनिं सौं ॥4॥ | + | ::रही-सही सोऊ कहि दीनी हिचकीनिं सौं ॥4॥ |
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09:38, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण
विरह-बिथा की कथा अकथ अथाह महा,
कहत बनै न जो प्रबीन सुकबीनि सौं ।
कहैं रतनाकर बुझावन लगे ज्यौं कान्ह,
ऊधौ कौं कहन-हेतु ब्रज-जुवतीनि सौं ॥
गहबरि आयौ गरौ भभरि अचानक त्यौं,
प्रेम परयौ चपल चुचाइ पुतरीनि सौं ।
नैंकु कही बैननि, अनेक कही नैननि सौं,
रही-सही सोऊ कहि दीनी हिचकीनिं सौं ॥4॥