भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
 +
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ
  
महरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त<br>
+
ज़ोफ़<ref>दुर्बलता</ref> में ताना-ए-अग़यार<ref>शत्रुओं का व्यंग्य</ref> का शिकवा क्या है
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ<br><br>
+
बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी न सकूँ
  
ज़ौफ़ में ताना-ए-अग़यार का शिकवा क्या है<br>
+
ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
बात कुछ सर तो नहीं है के उठा भी न सकूँ <br><br>
+
क्या क़सम है तेरे मिलने की कि खा भी न सकूँ</poem>
 
+
{{KKMeaning}}
ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना<br>
+
क्या क़सम है तेरे मिलने की के खा भी न सकूँ <br><br>
+

21:58, 5 मार्च 2010 के समय का अवतरण

मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ

ज़ोफ़<ref>दुर्बलता</ref> में ताना-ए-अग़यार<ref>शत्रुओं का व्यंग्य</ref> का शिकवा क्या है
बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी न सकूँ

ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
क्या क़सम है तेरे मिलने की कि खा भी न सकूँ

शब्दार्थ
<references/>