भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इस सारे दृश्य के बीच / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२ |संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खि…)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:46, 9 मार्च 2010 के समय का अवतरण

नीरव रात्रि में
एक तारा कांपता है

कितनी दूर पृथ्वी से
झिलमिल एक रोशनी
झील पर
ठहरी है

बादल उड़ रहे हैं आसमान में
इस सारे दृश्य के बीच
तुम्हारा होना
अब भी है कहीं
इसी धरती पर

तुम हो कहीं
ठीक वैसे
जैसे सुदूर वह तारा

जो मेरा नहीं, मेरे लिए नहीं
पर जो है
इस सारे दृश्य के बीच
इसी धरती पर