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"कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं | रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं | ||
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भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में | भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में | ||
बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं | बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं | ||
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06:38, 29 मार्च 2010 के समय का अवतरण
कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं
हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं
यूँ हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों
रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं
छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत
धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं
भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में
बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं