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"दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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− | देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद | + | देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद |
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− | रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती< | + | रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती |
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06:42, 29 मार्च 2010 का अवतरण
दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती
ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती
कुछ लोग यूँ ही शहर में हमसे भी ख़फा हैं
हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती
देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद
वो कौन है जिससे तेरी सूरत नहीं मिलती
हँसते हुए चेहरों से है बाज़ार की ज़ीनत
रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती