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"सीता असगुन कौं कटाई नाक एक बेरि / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

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सोच है यहै कै संग ताके रंगभौन माहिं  
 
सोच है यहै कै संग ताके रंगभौन माहिं  
 
::कौन धौ अनोखौ ढंग रचति निराटी है ।
 
::कौन धौ अनोखौ ढंग रचति निराटी है ।
छाँटि देति खाट किधौं पाटि देति माटी है ॥76॥
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छाँटि देत कूबर कै आंटि देति डाँट कोऊ
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::काटि देति खाट किधौं पाटि देति माटी है ॥76॥
 
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10:23, 3 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

सीता असगुन कौं कटाई नाक एक बेरि
सोई करि कूब राधिका पै फेरि फाटी है ।
कहै रतनाकर परेखौं नाहिं याकौ नैंकु
ताकी तौ सदा की यह पाकी परिपाटी है ॥
सोच है यहै कै संग ताके रंगभौन माहिं
कौन धौ अनोखौ ढंग रचति निराटी है ।
छाँटि देत कूबर कै आंटि देति डाँट कोऊ
काटि देति खाट किधौं पाटि देति माटी है ॥76॥