भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आए दौरि पौरि लौं अबाई सुन ऊधव की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथ…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
07:40, 16 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
आए दौरि पौरि लौं अबाई सुन ऊधव की
और ही विलोकि दसा दृग भरि लेत हैं ।
कहै रतनाकर बिलोकि बिलखात उन्हैं
येऊ कर काँपत करेजै धरि लेत हैं ॥
आवंति कछूक पूछिबे और कहिबे की मन
परत न साहस पै दोऊ दरि लेत हैं ।
आनन उदास सांस भरि उकसौहैं करि
सौहैं करि नैननि निचौहैं करि लेत हैं ॥106॥