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"इतना तो बताते जाते ! / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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इतना तो बताते जाते  
 
इतना तो बताते जाते  
 
 
कि पता ठिकाना तेरा मैं किससे पूछूँ ?  
 
कि पता ठिकाना तेरा मैं किससे पूछूँ ?  
 
 
रास्तों से !  
 
रास्तों से !  
 
 
हवाओं से !  
 
हवाओं से !  
 
 
या फिर उन अनजाने चेहरों से  
 
या फिर उन अनजाने चेहरों से  
 
 
जो घूर रहे कौतूहल से  
 
जो घूर रहे कौतूहल से  
 
 
तेरे मुझको !  
 
तेरे मुझको !  
 
 
बीतते जा रहे हैं दिन-दर-दिन  
 
बीतते जा रहे हैं दिन-दर-दिन  
 
 
लगता रहता हूँ मैं शर्त खुद से ही  
 
लगता रहता हूँ मैं शर्त खुद से ही  
 
 
कि जब 'ये' हो जाएगा तो आ जाओगे तुम।  
 
कि जब 'ये' हो जाएगा तो आ जाओगे तुम।  
 
 
और बीत गया अरसा  
 
और बीत गया अरसा  
 
 
खुद से शर्तें हारते हुए भी  
 
खुद से शर्तें हारते हुए भी  
 
 
पर तुम न आए।  
 
पर तुम न आए।  
 
 
सच मानो,  
 
सच मानो,  
 
 
ठहर गई है जिंदगी जैसे  
 
ठहर गई है जिंदगी जैसे  
 
 
तुम्हारे इंतजार के सिवा कुछ नहीं है मेरा जिम्मा  
 
तुम्हारे इंतजार के सिवा कुछ नहीं है मेरा जिम्मा  
 
 
और नहीं माना जाता है काम  
 
और नहीं माना जाता है काम  
 
 
एक इंतजार अंतहीन  
 
एक इंतजार अंतहीन  
 
 
इतना कमजोर होता है इन्सान  
 
इतना कमजोर होता है इन्सान  
 
 
नहीं जानता था मैं  
 
नहीं जानता था मैं  
 
 
कि बँट जाता है आप ही  
 
कि बँट जाता है आप ही  
 
 
बचा राखी सांसे, तुम्हारे इंतजार ने  
 
बचा राखी सांसे, तुम्हारे इंतजार ने  
 
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हालाँकि हद होती है हर बात की...
हालाँकि हद होती है हर बात की........|
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09:26, 16 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

इतना तो बताते जाते
कि पता ठिकाना तेरा मैं किससे पूछूँ ?
रास्तों से !
हवाओं से !
या फिर उन अनजाने चेहरों से
जो घूर रहे कौतूहल से
तेरे मुझको !
बीतते जा रहे हैं दिन-दर-दिन
लगता रहता हूँ मैं शर्त खुद से ही
कि जब 'ये' हो जाएगा तो आ जाओगे तुम।
और बीत गया अरसा
खुद से शर्तें हारते हुए भी
पर तुम न आए।
सच मानो,
ठहर गई है जिंदगी जैसे
तुम्हारे इंतजार के सिवा कुछ नहीं है मेरा जिम्मा
और नहीं माना जाता है काम
एक इंतजार अंतहीन
इतना कमजोर होता है इन्सान
नहीं जानता था मैं
कि बँट जाता है आप ही
बचा राखी सांसे, तुम्हारे इंतजार ने
हालाँकि हद होती है हर बात की...