भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सूखा कुआँ जो मृत है / विनोद कुमार शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
− | सूखा | + | सूखा कुआँ तो मृत है |
बहुत मरा हुआ | बहुत मरा हुआ | ||
कि आत्महत्या करता है | कि आत्महत्या करता है |
01:59, 28 अप्रैल 2010 का अवतरण
सूखा कुआँ तो मृत है
बहुत मरा हुआ
कि आत्महत्या करता है
अपनी टूटी मुंडेर से
अपनी गहराई भरता हुआ
कुऍं के खोदने से निकले हुए
पत्थरों से
जो मुंडेर बनी थी
कुएँ के तल की कुँआसी इच्छा
उसकी अंदरूनी गहरी
बारूद से तड़कने की
परन्तु अपने ही निकले हुए पत्थरों और मिट्टी से
भरता हुआ कुआँ
कुआँ न होने की तरफ लौट रहा है,
अब यह पलायन था कुऍं का
गॉंव पहले उजाड़ हो चुका था