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"घर संसार में घुसते ही / विनोद कुमार शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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घर संसार में घुसते ही<br />
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पहिचान बतानी होती है<br />
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उसकी आहट सुन<br />
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|रचनाकार=विनोद कुमार शुक्ल
पत्‍नी बच्‍चे पूछेंगे 'कौन?'<br />
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|संग्रह=सब कुछ होना बचा रहेगा / विनोद कुमार शुक्ल
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घर उसका शिविर<br />
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घर संसार में घुसते ही
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पहिचान बतानी होती है
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उसकी आहट सुन
रबर की चप्‍पल को<br />
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पत्‍नी बच्‍चे पूछेंगे 'कौन?'
छेद कर कोई जूते का खीला उसका तलुआ छेद गया है.<br />
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तब दरवाजा खुलता है।
दूसरे दिन अपने घर का पूरा दरवाजा खोलकर<br />
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वह बाहर निकला<br />
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घर उसका शिविर
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जहाँ घायल होकर वह लौटता है।
अखिल संसार में उसकी आहट हुई<br />
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दबे पॉंव नहीं<br />
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रबर की चप्‍पल को
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छेद कर कोई जूते का खीला उसका तलुआ छेद गया है।
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सड़क के कुत्‍ते ने पहिचानकर पूंछ हिलाई<br />
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दूसरे दिन अपने घर का पूरा दरवाजा खोलकर
किराने वाला उसे देखकर मुस्‍कुराया<br />
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वह बाहर निकला
मुस्‍कुराया तो वह भी.<br />
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अखिल संसार में उसकी आहट हुई
एक पान ठेले के सामने<br />
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दबे पाँव नहीं
कुछ ज्‍यादा देर खड़े होकर<br />
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खाँसा और कराहा
उधार पान मॉंगा<br />
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'कौन?' यह किसी ने नहीं पूछा
और पान खाते हुए<br />
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सड़क के कुत्‍ते ने पहिचानकर पूंछ हिलाई
कुछ देर खड़े होकर<br />
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किराने वाला उसे देखकर मुस्‍कुराया
फिर कुछ ज्‍यादा देर खड़े होकर<br />
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मुस्‍कुराया तो वह भी।
परास्‍त हो गया.<br />
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एक पान ठेले के सामने
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कुछ ज्‍यादा देर खड़े होकर
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उधार पान माँगा
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और पान खाते हुए
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कुछ देर खड़े होकर
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फिर कुछ ज्‍यादा देर खड़े होकर
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परास्‍त हो गया।
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02:06, 28 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

घर संसार में घुसते ही
पहिचान बतानी होती है
उसकी आहट सुन
पत्‍नी बच्‍चे पूछेंगे 'कौन?'
'मैं हूँ' वह कहता है
तब दरवाजा खुलता है।

घर उसका शिविर
जहाँ घायल होकर वह लौटता है।

रबर की चप्‍पल को
छेद कर कोई जूते का खीला उसका तलुआ छेद गया है।
पैर से पट्टी बॉंध सुस्‍ता कर कुछ खाकर
दूसरे दिन अपने घर का पूरा दरवाजा खोलकर
वह बाहर निकला

अखिल संसार में उसकी आहट हुई
दबे पाँव नहीं
खाँसा और कराहा
'कौन?' यह किसी ने नहीं पूछा
सड़क के कुत्‍ते ने पहिचानकर पूंछ हिलाई
किराने वाला उसे देखकर मुस्‍कुराया
मुस्‍कुराया तो वह भी।

एक पान ठेले के सामने
कुछ ज्‍यादा देर खड़े होकर
उधार पान माँगा
और पान खाते हुए
कुछ देर खड़े होकर
फिर कुछ ज्‍यादा देर खड़े होकर
परास्‍त हो गया।