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+ | * [[रुपसि तेरा घन-केश पाश! / महादेवी वर्मा]] |
22:06, 5 जनवरी 2008 का अवतरण
नीरजा
रचनाकार | महादेवी वर्मा |
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प्रकाशक | |
वर्ष | 1934 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता संग्रह |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध | यह महादेवी वर्मा जी का तीसरा प्रकाशित काव्य संग्रह है |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर! / महादेवी वर्मा
- धीरे धीरे उतर क्षितिज से / महादेवी वर्मा
- पुलक पुलक उर, सिहर सिहर तन / महादेवी वर्मा
- तुम्हें बाँध पाती सपने में! / महादेवी वर्मा
- आज क्यों तेरी वीणा मौन? / महादेवी वर्मा
- श्रृंगार कर ले री सजनि! / महादेवी वर्मा
- कौन तुम मेरे हृदय में? / महादेवी वर्मा
- ओ पागल संसार! / महादेवी वर्मा
- विरह का जलजात जीवन / महादेवी वर्मा
- बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ! / महादेवी वर्मा
- रुपसि तेरा घन-केश पाश! / महादेवी वर्मा