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21:07, 14 मार्च 2007 का अवतरण

रचनाकार: परवीन शाकिर

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अब्र-ए-बहार ने
फूल का चेहरा
अपने बनफ़्शी हाथ में लेकर
ऐसे चूमा
फूल के सारे दुख
ख़ुश्बू बन कर बह निकले हैं