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* [[पहुँच तेरे आधरों के पास / हरिवंशराय बच्चन]] | * [[पहुँच तेरे आधरों के पास / हरिवंशराय बच्चन]] |
13:07, 26 मई 2010 के समय का अवतरण
हलाहल
रचनाकार | हरिवंशराय बच्चन |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
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- जगत-घट को विष से कर पूर्ण / हरिवंशराय बच्चन
- जगत-घट, तुझको दूँ यदि फोड़ / हरिवंशराय बच्चन
- हिचकते औ' होते भयभीत / हरिवंशराय बच्चन
- हुई थी मदिरा मुझको प्राप्त / हरिवंशराय बच्चन
- कि जीवन आशा का उल्लास / हरिवंशराय बच्चन
- जगत है चक्की एक विराट / हरिवंशराय बच्चन
- रहे गुंजित सब दिन, सब काल / हरिवंशराय बच्चन
- नहीं है यह मानव की हार / हरिवंशराय बच्चन
- हलाहल और अमिय, मद एक / हरिवंशराय बच्चन
- सुरा पी थी मैंने दिन चार / हरिवंशराय बच्चन
- देखने को मुट्ठी भर धूलि / हरिवंशराय बच्चन
- उपेक्षित हो क्षिति से दिन रात / हरिवंशराय बच्चन
- आसरा मत ऊपर का देख / हरिवंशराय बच्चन
- कहीं मैं हो जाऊँ लयमान / हरिवंशराय बच्चन
- और यह मिट्टी है हैरान / हरिवंशराय बच्चन
- पहुँच तेरे आधरों के पास / हरिवंशराय बच्चन