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"धुएँ से भी / विजय कुमार पंत" के अवतरणों में अंतर
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10:06, 30 मई 2010 का अवतरण
धुंवे से भी कभी अंदाज़ कर लेना
जला है क्या..
कभी उड़ते गुब्बारों से समझ लेना
चला है क्या..
कभी तुम देख लेना मन से,
कैसी है
खलिश हम में ..
लरजते होंठ से छूकर समझ लेना
बला है क्या
कभी तुम सोचकर अपनी ही बातों को
उलझ लेना
मेरी खामोशियों को सुन समझ लेना
फला है क्या..
दुआ मिटने की मेरे और कितने
लोग करते है..
कभी उनके गले लग कर समझ लेना
भला है क्या..
