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"धुएँ से भी / विजय कुमार पंत" के अवतरणों में अंतर

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धुंवे से भी कभी अंदाज़ कर लेना
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जला है क्या..
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दुआ मिटने की मेरे और कितने  
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लोग करते है..
 
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कभी उनके गले लग कर समझ लेना  
 
कभी उनके गले लग कर समझ लेना  
 
भला है क्या..
 
भला है क्या..
 
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16:07, 1 जून 2010 के समय का अवतरण

धुएँ से भी कभी अंदाज़ कर लेना
जला है क्या..
कभी उड़ते गुबारों से समझ लेना
चला है क्या..

कभी तुम देख लेना मन से,
कैसी है
खलिश हम में ..
लरजते होंठ से छूकर समझ लेना
बला है क्या

कभी तुम सोचकर अपनी ही बातों को
उलझ लेना
मेरी खामोशियों को सुन समझ लेना
फला है क्या..

दुआ मिटने की मेरी और कितने
लोग करते है..
कभी उनके गले लग कर समझ लेना
भला है क्या..