भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जाला / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह = मैं यहाँ हूँ / रमेश कौशिक }} <poem>…) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह = मैं यहाँ हूँ / रमेश कौशिक | |संग्रह = मैं यहाँ हूँ / रमेश कौशिक | ||
}} | }} | ||
− | <poem><br /> | + | <poem><br />मकड़ी जाला बुनती है |
+ | तुम भी जाला बुनते हो | ||
+ | मैं भी जाला बुनता हूँ | ||
+ | हम सब जाले बुनते हैं। | ||
+ | |||
+ | जाले इसीलिए हैं | ||
+ | कि वे बुने जाते हैं | ||
+ | मकड़ी के द्वारा | ||
+ | तुम्हारे, मेरे | ||
+ | या हम सब के द्वारा। | ||
+ | |||
+ | मकड़ी, तुम या मैं | ||
+ | या हम सब इसीलिए हैं | ||
+ | कि अपने जालों में | ||
+ | या एक-दूसरे के बुने | ||
+ | जालों में फँसे। | ||
+ | |||
+ | जब हम जाले बुनते हैं | ||
+ | तब चुप-चुप बुनते हैं | ||
+ | लेकिन जब उनमें फँसते हैं | ||
+ | तब बहुत शोर करते है। | ||
+ | </poem> |
16:51, 25 जून 2010 के समय का अवतरण
मकड़ी जाला बुनती है
तुम भी जाला बुनते हो
मैं भी जाला बुनता हूँ
हम सब जाले बुनते हैं।
जाले इसीलिए हैं
कि वे बुने जाते हैं
मकड़ी के द्वारा
तुम्हारे, मेरे
या हम सब के द्वारा।
मकड़ी, तुम या मैं
या हम सब इसीलिए हैं
कि अपने जालों में
या एक-दूसरे के बुने
जालों में फँसे।
जब हम जाले बुनते हैं
तब चुप-चुप बुनते हैं
लेकिन जब उनमें फँसते हैं
तब बहुत शोर करते है।