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बरछों से कुन्त-कटारों से॥ | बरछों से कुन्त-कटारों से॥ | ||
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+ | दाढ़ों में दबा दबाकर तन | ||
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+ | अरि - शोणित से भर गया छुरा॥ | ||
+ | हय - शिर उतार गज - दल विदार, | ||
+ | अरि - तन दो दो टुकड़े करती। | ||
+ | तलवार चिता - सी बलती थी, | ||
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20:26, 15 सितम्बर 2010 का अवतरण
तलवार गिरी वैरी - शिर पर,
धड़ से शिर गिरा अलग जाकर।
गिर पड़ा वहीं धड़, असि का जब
भिन गया गरल रग रग जाकर॥
गज से घोड़े पर कूद पड़ा,
कोई बरछे की नोक तान।
कटि टूट गई, काठी टूटी,
पड़ गया वहीं घोड़ा उतान॥
गज - दल के गिर हौदे टूटे,
हय - दल के भी मस्तक फूटे।
बरछों ने गोभ दिए, छर छर
शोणित के फौवारे छूटे॥
लड़ते सवार पर लहराकर
खर असि का लक्ष्य अचूक हुआ।
कट गया सवार गिरा भू पर,
घोड़ा गिरकर दो टूक हुआ॥
क्षण हाथी से हाथी का रण,
क्षन घोड़ों से घोड़ों का रण।
हथियार हाथ से छूट गिरे,
क्षण कोड़ों से कोड़ों का रण॥
क्षण भर ललकारों का संगर,
क्षण भर किलकारों का संगर।
क्षण भर हुंकारों का संगर,
क्षण भर हथियारों का संगर॥
कटि कटकर बही, कटार बही,
खर शोणित में तलवार बही।
घुस गए कलेजों में खंजर,
अविराम रक्त की धार बही॥
सुन नाद जुझारू के भैरव,
थी काँप रही अवनी थर थर।
घावों से निर्झर के समान
बहता था गरम रुधिर झर झर॥
बरछों की चोट लगी शिर पर,
तलवार हाथ से छूट पड़ी।
हो गए लाल पट भीग भीग,
शोणित की धारा फूट पड़ी॥
रावल - दल का यह हाल देख
वैरी - दल संगर छोड़ भगा।
हाथों के खंजर फेंक फेंक
खिलजी से नाता तोड़ भगा॥
सेनप के डर से रुके वीर,
पर काँप रहे थे बार - बार।
डट गए तान संगीन तुरत,
पर हाँफ रहे थे वे अपार॥
खूँखार भेड़ियों के समान
भट अरि - भेड़ों पर टूट पड़े।
अवसर न दिया असि लेने का
शत - शत विद्युत् से छूट पड़े॥
लग गए काटने वैरी - शिर,
अपनी तीखी तलवारों से।
लग गए पाटने युद्धस्थल,
बरछों से कुन्त-कटारों से॥
अरि - हृदय - रक्त का खप्पर पी
थीं तरज रही क्षण क्षण काली।
दाढ़ों में दबा दबाकर तन
वह घूम रही थी मतवाली॥
चुपचाप किसी ने भोंक दिया,
उर - आरपार कर गया छुरा।
झटके से उसे निकाल लिया,
अरि - शोणित से भर गया छुरा॥
हय - शिर उतार गज - दल विदार,
अरि - तन दो दो टुकड़े करती।
तलवार चिता - सी बलती थी,
थी रक्त - महासागर तरती॥