भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रजनीगंधा / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=चैती / त्रिलोचन | |संग्रह=चैती / त्रिलोचन | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
अनदिख टहनियाँ | अनदिख टहनियाँ | ||
− | |||
रजनीगंधा की | रजनीगंधा की | ||
− | |||
हवा में | हवा में | ||
− | |||
फैली हैं | फैली हैं | ||
− | |||
साँसों में मेरी | साँसों में मेरी | ||
− | |||
लहराती हैं | लहराती हैं | ||
− | |||
चेतना को छेड़ कर | चेतना को छेड़ कर | ||
− | |||
सिराओं में | सिराओं में | ||
− | |||
जीवन का वेग | जीवन का वेग | ||
− | |||
बन जाती हैं | बन जाती हैं | ||
− | |||
इन के उलहने की गति | इन के उलहने की गति | ||
− | |||
जान पाता हूँ | जान पाता हूँ | ||
− | |||
केवल परस से | केवल परस से | ||
− | |||
रात रोक नहीं पाती | रात रोक नहीं पाती | ||
+ | </poem> |
05:01, 22 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
अनदिख टहनियाँ
रजनीगंधा की
हवा में
फैली हैं
साँसों में मेरी
लहराती हैं
चेतना को छेड़ कर
सिराओं में
जीवन का वेग
बन जाती हैं
इन के उलहने की गति
जान पाता हूँ
केवल परस से
रात रोक नहीं पाती