भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"काशी में महामारी / तुलसीदास/ पृष्ठ 2" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…)
 
 
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
 
  ( छंद 171, 172)
 
  ( छंद 171, 172)
  
 +
(171)
 +
पंचकोस पुन्यकोस स्वारथ-परमारथको
 +
जनि आपु आपने सुपाय बास दियो है।
  
 +
नीच नर-नारि न सँभारि सके आदर,
 +
लहत फल कादर बिचारि जो न कियो है।।
 +
 +
बारी बारानसी बिनु कहे चक्रपानि चक्र,
 +
मानि हितहानि सो मुरारि मन भियो है।
 +
 +
रोसमें भरोसो एक आसुतोस कहि जात,
 +
बिकल बिलोकि लोक कालकूट पियो है।।
 +
 +
(172)
 +
 +
रचत बिरंचि , हरि पालत, हरत हर,
 +
तेरे हीं प्रसाद अग-जग-पालिके।
 +
 +
तोहिमें बिकास बिस्व , तोहि में बिलास  सब,
 +
तोहिमें समात, मातु भूमिधरबालिके।।
 +
 +
दीजै अवलंब जगदंब!  न बिलंब कीजै,
 +
करूनातरंगिनी कृपा-तरंग-मालिके।
 +
 +
रोष महामारी, परितोष महतारी दुनी
 +
देखिये दुखारी, मुनि -मानस-मरालिके।।
 
  
 
  
 
</poem>
 
</poem>

21:42, 9 मई 2011 के समय का अवतरण


काशी में महामारी-2

 ( छंद 171, 172)

(171)
पंचकोस पुन्यकोस स्वारथ-परमारथको
जनि आपु आपने सुपाय बास दियो है।

नीच नर-नारि न सँभारि सके आदर,
 लहत फल कादर बिचारि जो न कियो है।।

 बारी बारानसी बिनु कहे चक्रपानि चक्र,
मानि हितहानि सो मुरारि मन भियो है।

रोसमें भरोसो एक आसुतोस कहि जात,
बिकल बिलोकि लोक कालकूट पियो है।।

(172)

रचत बिरंचि , हरि पालत, हरत हर,
 तेरे हीं प्रसाद अग-जग-पालिके।

तोहिमें बिकास बिस्व , तोहि में बिलास सब,
तोहिमें समात, मातु भूमिधरबालिके।।

दीजै अवलंब जगदंब! न बिलंब कीजै,
करूनातरंगिनी कृपा-तरंग-मालिके।

रोष महामारी, परितोष महतारी दुनी
देखिये दुखारी, मुनि -मानस-मरालिके।।