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किष्किन्धाकाण्ड आरंभ | किष्किन्धाकाण्ड आरंभ | ||
'''ऋष्यमूकपर राम''' | '''ऋष्यमूकपर राम''' | ||
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+ | भूषन बसन बिलोकत सियके। | ||
+ | प््रेाम-बिबस मन,कंप पुलक तनु, नीरजनयन नीर भरे पियके।1। | ||
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+ | स्कुचत कहत, सुमिरि उर उमगत, सील सनेह सुगुनगन तियके। | ||
+ | स्वामि दसा लखि लषन सखा कपि , पिघले हैं आँच माठ मानो घियके। 2 | ||
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+ | सोचत हानि मानि मन गुनि गुनि गये निघटि फल सकल सुकियके। | ||
+ | वरने जामवंत तेहि अवसर बचन बिबेक बीररस बियके।3।। | ||
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+ | धीर बीर सुनि समुझि परसपर, बल-उपाय उघटत निज हियके। | ||
+ | तुलसिदास यह समउ कहेतें कबि लागत निपट निठुर जड़ जियके।4। | ||
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17:15, 29 मई 2011 के समय का अवतरण
किष्किन्धाकाण्ड आरंभ
ऋष्यमूकपर राम
भूषन बसन बिलोकत सियके।
प््रेाम-बिबस मन,कंप पुलक तनु, नीरजनयन नीर भरे पियके।1।
स्कुचत कहत, सुमिरि उर उमगत, सील सनेह सुगुनगन तियके।
स्वामि दसा लखि लषन सखा कपि , पिघले हैं आँच माठ मानो घियके। 2
सोचत हानि मानि मन गुनि गुनि गये निघटि फल सकल सुकियके।
वरने जामवंत तेहि अवसर बचन बिबेक बीररस बियके।3।।
धीर बीर सुनि समुझि परसपर, बल-उपाय उघटत निज हियके।
तुलसिदास यह समउ कहेतें कबि लागत निपट निठुर जड़ जियके।4।