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"आये थे जो बड़े ही ताव के साथ / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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कहाँ जायेंगे इस स्वभाव के साथ!
 
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04:14, 4 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


आये थे जो बड़े ही ताव के साथ
बह गए वक्त के बहाव के साथ

बात तो कुछ न हो सकी उनसे
हिचकियाँ बढ़ गईं दबाव के साथ

उनकी अलकें सँवारते हमने
काट दी ज़िन्दगी अभाव के साथ

हम किनारे से दूर जा न सके
एक चितवन बँधी थी नाव के साथ

सर हथेली पे लेके बैठे हैं
कुछ कहे तो कोई लगाव के साथ

हमसे मिलिए तो आइने की तरह
प्यार टिकता नहीं दुराव के साथ

और क्या दाँव पर लगायें अब!
लग चुका सब तो पहले दाँव के साथ

प्यार काँटों में ढूँढ़ते हैं गुलाब
कहाँ जायेंगे इस स्वभाव के साथ!