भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुझ लब की सिफ़त / वली दक्कनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वली मोहम्मद 'वली' }} Category:गज़ल तुझ लब की सिफ़त लाल बदख्श...) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=वली | + | |रचनाकार=वली दक्कनी |
}} | }} | ||
− | [[Category: | + | [[Category:ग़ज़ल]] |
तुझ लब की सिफ़त लाल बदख्श़ाँ सूँ कहूँगा।<br> | तुझ लब की सिफ़त लाल बदख्श़ाँ सूँ कहूँगा।<br> |
01:45, 28 जून 2008 के समय का अवतरण
तुझ लब की सिफ़त लाल बदख्श़ाँ सूँ कहूँगा।
जादू है तेरे नैन ग़जाला सूँ कहूँगा।।
दी हक़ ने तुझे बादशाही हुस्न-नगर की।
यह किश्वरे ईराँ में सुलेमाँ सूँ कहूँगा।।
ज़ख्मी किया है मुझे तेरी पलकों की अनी ने।
ज़ख्म तेरा खंज़रे भालाँ सूँ कहूँगा।।
बेसब्र न हो ऐ 'वली'! इस दर्द सूँ हरगाह।
जल्दी सूँ तेरे दर्द की दरमाँ सूँ कहूंगा।।