भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भए अति निठुर / घनानंद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=घनानंद
 
|रचनाकार=घनानंद
 
}}
 
}}
[[Category:कवित्त]]
+
{{KKCatKavitt}}
 
+
<poem>
::::'''कवित्त'''<br><br>
+
भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी,
भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी,<br>
+
::याही दुख में हमैं जक लागी हाय हाय है।
::याही दुख में हमैं जक लागी हाय हाय है।<br>
+
तुम तो निपट निरदई, गई भूलि सुधि,
तुम तो निपट निरदई, गई भूलि सुधि,<br>
+
::हमैं सूल सेलनि सो क्योहूँन भुलाय है।
::हमैं सूल सेलनि सो क्योहूँन भुलाय है।<br>
+
मीठे मीठे बोल बोलि ठगी पहिलें तौ तब,
मीठे मीठे बोल बोलि ठगी पहिलें तौ तब,<br>
+
::अब जिय जारत कहौ धौ कौन न्याय है।
::अब जिय जारत कहौ धौ कौन न्याय है।<br>
+
सुनी है कै नाहीं, यह प्रगट कहावति जू,
सुनी है कै नाहीं, यह प्रगट कहावति जू,<br>
+
::काहू कलपायहै सु कैसे कल पायहै॥
::काहू कलपायहै सु कैसे कल पायहै॥<br>
+
</poem>

11:01, 16 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी,
याही दुख में हमैं जक लागी हाय हाय है।
तुम तो निपट निरदई, गई भूलि सुधि,
हमैं सूल सेलनि सो क्योहूँन भुलाय है।
मीठे मीठे बोल बोलि ठगी पहिलें तौ तब,
अब जिय जारत कहौ धौ कौन न्याय है।
सुनी है कै नाहीं, यह प्रगट कहावति जू,
काहू कलपायहै सु कैसे कल पायहै॥