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"सहरा से पाती / रेशमा हिंगोरानी" के अवतरणों में अंतर

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बादलों के भी,
 
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कभी उनसे भी बरस जाएँ,
 
कभी उनसे भी बरस जाएँ,
 
शबनमी बूँदें,
 
शबनमी बूँदें,
 
  
 
कभी तो अपना भी वीराना,
 
कभी तो अपना भी वीराना,

10:17, 30 जनवरी 2012 के समय का अवतरण

मेहराब-ए-माह से,
हर तारा,
तीर बन के चला,
कोई नावक-ए-नीमकश,
तो कोई तन के चला !

फ़लक के वार सभी ठीक,
निशाने पे चले,
सिसकियाँ भरता रहा दिल,
उसी शजर के तले,

कि जिसकी सूखी शाख पर,
सजे हुए पत्ते,
रोज़ ही बैठते, खामोश,
निगाहें बाँधे...

कोई तो तीर,
बादलों के भी,
सीनों पे चलें,

कभी उनसे भी बरस जाएँ,
शबनमी बूँदें,

कभी तो अपना भी वीराना,

हो आबाद यहाँ !

31.07.93