भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"स्मरण / प्रेमशंकर रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर रघुवंशी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> देह ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
और दोनों की
 
और दोनों की
 
तकली से झरते तार
 
तकली से झरते तार
टूटे नहीं कभी
+
टूटे नहीं कभी !!
 
</poem>
 
</poem>

23:18, 13 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

देह के
सो जाने पर भी
जागती रही याद

याद के साथ
जागता रहा
प्यार

और दोनों की
तकली से झरते तार
टूटे नहीं कभी !!