भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बात खुल के कहीं, भइल बा का ? / मनोज भावुक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=मनोज भावुक
 
|रचनाकार=मनोज भावुक
 
}}
 
}}
{{KKVID|v=-refPE80RuU}}
 
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 +
{{KKCatBhojpuriRachna}}
 +
{{KKVID|v=HKXG408sN_A}}
 
<poem>
 
<poem>
बात खुल के कहीं, भइल बा का ?  
+
बात खुल के कहीं, भइल बा का?  
प्यार के रंग चढ़ गइल बा का ?  
+
प्यार के रंग चढ़ गइल बा का?  
  
 
रंग चेहरा के बा उड़ल काहें ?
 
रंग चेहरा के बा उड़ल काहें ?
चोर मन के धरा गइल बा का ?  
+
चोर मन के धरा गइल बा का?  
  
'''हम त हर घात के भुला गइलीं
+
"हम त हर घात के भुला गइलीं
रउरा मन में अभी मइल बा का ?'''
+
रउरा मन में अभी मइल बा का ?"
  
 
आईं अबहूँ रहे के मिल-जुल के
 
आईं अबहूँ रहे के मिल-जुल के
जिन्दगी में अउर धइल बा का ?  
+
जिन्दगी में अउर धइल बा का?  
<poem>
+
</poem>

23:22, 23 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

बात खुल के कहीं, भइल बा का?
प्यार के रंग चढ़ गइल बा का?

रंग चेहरा के बा उड़ल काहें ?
चोर मन के धरा गइल बा का?

"हम त हर घात के भुला गइलीं
रउरा मन में अभी मइल बा का ?"

आईं अबहूँ रहे के मिल-जुल के
जिन्दगी में अउर धइल बा का?