"काळ दर काळ / रामस्वरूप परेश" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 9 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=रामस्वरूप परेश | |रचनाकार=रामस्वरूप परेश | ||
− | |||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatKavita}} |
+ | {{KKCatRajasthaniRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
थां सू पैली गज वदन | थां सू पैली गज वदन | ||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
दुरभिख में रिछपाल | | दुरभिख में रिछपाल | | ||
− | लम्बोदर लाजां | + | लम्बोदर लाजां मरां |
किंया चढ़ावां भोग | | किंया चढ़ावां भोग | | ||
मूसक ताणी भी नहीं | मूसक ताणी भी नहीं | ||
पंक्ति 85: | पंक्ति 85: | ||
रोटी होज्या रामजी | रोटी होज्या रामजी | ||
पेट भरे खा पात | | पेट भरे खा पात | | ||
− | + | ||
− | - | + | जूझै बै जुझार सा |
− | + | पडै जठ्यां तक पार | | |
+ | कुण जाणे कुण जीत ले | ||
+ | कुण किण सें ज्या हार | | ||
+ | |||
+ | धान निमड्गो कोठले | ||
+ | खाली होग्या खेत | | ||
+ | सो-कीं खुटगो काळ में | ||
+ | बची भाग में रेत | | ||
+ | |||
+ | हीरा मोती निपजती | ||
+ | रेत निगळगी नाज | | ||
+ | काल जकी वरदान ही | ||
+ | बणगी आज सराप | | ||
+ | |||
+ | करसो रैगो कळपतो | ||
+ | मन में दरद दबा'र | | ||
+ | भैंत जीवणों हाथ हो | ||
+ | लेगी भूख भगा'र | | ||
+ | |||
+ | ऊंळै मन सूं भी कदे | ||
+ | नी देखै तू आय | | ||
+ | म्हारो मरुधर बादळी | ||
+ | नीं आयो के दाय | | ||
+ | |||
+ | दूर उडावै मिनख नै | ||
+ | खुद सांभळ नै डोर | | ||
+ | करै सो मरजी रामजी | ||
+ | उण रो कीं नी जोर | | ||
+ | |||
+ | बूंद न बरसी बरस में | ||
+ | री उडीक अणमेत | | ||
+ | कैतो डरपी काळ सूं | ||
+ | कै म्हांसूं नीं हेत | | ||
+ | |||
+ | दोनूं कानी लाग री | ||
+ | बारैं भीतर आग | | ||
+ | लूंठी लू री लाय सूं | ||
+ | घणी पेट री दाझ | | ||
+ | |||
+ | भूख मिटादे मिनख रै | ||
+ | आपस रो अपणेस । | ||
+ | भूख दिखावै मिनख नै | ||
+ | अणचायो परदेस । | ||
+ | |||
+ | पोळी बारैं नीमडी | ||
+ | नीचे टूटी खाट । | ||
+ | धाप्यां कदे न नींद सूं | ||
+ | याद रवैला ठाठ । | ||
+ | |||
+ | भूख बणादे मतलबी | ||
+ | भूख डिगादे नीत । | ||
+ | दीठ बिसळज्या भूख सूं | ||
+ | भूखो करै अनीत । | ||
+ | |||
+ | सुपना आवै सांच नी | ||
+ | आवै आळ पताळ । | ||
+ | मरुधर तूठी मोकळी | ||
+ | पाणी पड्यो अचाळ ॥ | ||
+ | |||
+ | राम रूसगो रूंख सूं | ||
+ | पान गया से सूख । | ||
+ | छोडा बचगा बापडा | ||
+ | उणनै खागी भूख ॥ | ||
+ | |||
+ | काळ मरण रो नांव है | ||
+ | काळ जेज री गाळ । | ||
+ | भूख बिगाडै आज नै | ||
+ | आगम भेळै काळ ॥ | ||
+ | |||
+ | रोटी खायां बीतगा | ||
+ | जाणै बरस पचास । | ||
+ | मिनखां रै तन नीं रही | ||
+ | आज नाज री बास ॥ | ||
+ | |||
+ | रुळगा सगळा रावळा | ||
+ | गया छोड सै गांव । | ||
+ | तपो भलांई तावडो | ||
+ | छिटको सीळी छांव ॥ | ||
+ | |||
+ | रोहीडा रा रूखडा | ||
+ | हुया झाळ सूं लाल । | ||
+ | मरूधर आया काळ नै | ||
+ | जाणै रैया दकाल ॥ | ||
+ | |||
+ | घेर घुमेरी खेजड्यां | ||
+ | बध्यो लूंग रो जाळ । | ||
+ | म्हे पैली इ जाणगा | ||
+ | अबकै पडसी काळ ॥ | ||
+ | |||
+ | ठोड ठांयचो छूटग्यो | ||
+ | छूट्यो प्यारो गांव । | ||
+ | कूंळै मंडिया मोरिया | ||
+ | आंगण सीळीं छांव ॥ | ||
+ | |||
+ | मरी बापडी चिडकली | ||
+ | मनस्या मर में लो'र । | ||
+ | बरस बीतगा रेत में | ||
+ | न्हातां पाणी गे'र ॥ | ||
+ | |||
+ | फूल खिले नी पांखाड़ी | ||
+ | लूवां रो रमझोळ । | ||
+ | तुणको तक नी पांगरै | ||
+ | के प्राणां रो डोळ ॥ | ||
+ | |||
+ | |||
+ | रळता, मिलता, बैठता, | ||
+ | करता मन री बात । | ||
+ | चरभर बाजी खेलता | ||
+ | सै सुपना री बात ॥ | ||
+ | |||
+ | |||
+ | घर में पाव न पीसणों | ||
+ | तिरस्या डांगर ढ़ोर । | ||
+ | रूसी कुदरत कद मनै | ||
+ | माणख रो के जोर ॥ | ||
+ | |||
+ | घणे कोड सूं बाछड़ो | ||
+ | पाळ्यो,बणगो बैल । | ||
+ | पड्यो बेचणों भूख सूं | ||
+ | भाटो मन पर मेल ।। | ||
+ | |||
+ | पिणघट री रौनक गई | ||
+ | बापरगी सूनेड़। | ||
+ | जण-जण रै दुख सूं पडी | ||
+ | तालां मांय तरेड़ ॥ | ||
+ | |||
+ | म्हैलां जगतो दीवलो | ||
+ | सारी सारी रात । | ||
+ | पण फेरयूं भी रैंवती | ||
+ | आधी मन री बात ।। | ||
+ | |||
+ | काळ तनै अतरो कियां | ||
+ | इण मरूधर अपणेस | | ||
+ | बेगो पूठो बावड़ै | ||
+ | ज्यावै जे परदेस | | ||
+ | |||
+ | प्रीत हुई अब पांगळी | ||
+ | मतलब हुयो जावान | | ||
+ | धरम करम थोथा हुया | ||
+ | मूँगों धोबो धान | | ||
+ | |||
+ | मेल ऊंट पर गुदड़ा | ||
+ | हुया गाँव सूं भीर | | ||
+ | मूड मूड जोवै झूंपड़ा | ||
+ | भर्या नैण में नीर | | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
+ | यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी| |
13:31, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
थां सू पैली गज वदन
मूसक रै गल माल |
पोथी री अैई करे
दुरभिख में रिछपाल |
लम्बोदर लाजां मरां
किंया चढ़ावां भोग |
मूसक ताणी भी नहीं
दाणा के संयोग ?
माँ सुरसत वरदान दे
विनती बारम्बार |
बिथा बखाणूं काळ री
देतूं आखर च्यार |
हंस छोड़ मा आवजे
सुरसत सूनै गांव |
थारे उजले हंस नीं
पड़े काळ री छांव |
बालाजी रै देवरे
रात जगाता लोग |
संवत हो तो म्हे करां
सवामणी रो भोग |
जिण बाढ्या इक बाण सूं
रावण रा दस सीस |
नाम जप्यां जासी नहीं
काळ जको बिन सीस |
चिड़ी कमेडी कागला
गांव गया सै छोड़ |
विपदा में कुण साथ दे
सै ले मूंडो मोड़ |
फळसै ऊबी खेजड़ी
जोवे अै दरसाव |
मिनख बापड़ो हारज्या
काळ जीतले दाव |
आभै उमड़ी बादळी
पण पटकी नि छांट |
किस्या जलम री काढ़ ली
अनदाता सूं आंट |
बीज पडै जद कीं उगै
आ धरती री बाण |
बिन पाणी रै के करै
करै तो पाणी पाण |
हुवै लड़ाई जीत ले
मरुधर रा जूझार |
पण इणने कुण टाळदे
आ मालिक री मार |
खेत खळा सूना हुया
सूना हुया गुवाड़ |
नेह चूकगो नैण सूं
तोडै़ बधगी राड़ |
कद धरती रै आवसी
उणियारा पर ओप |
सीळो पड़सी कद बता
जबर काळ रो कोप |
धोरां हाळा देश में
पड़े कदे नी काळ |
हे मालिक अरदास है
आप करो रिछपाळ |
म्हारे मरुधर देस री
राम करो रिछपाल |
आवे नी नेड़े कदे
ताती बळती भाळ |
पगां चालती दीसरी
बा बड़कां री बात |
रोटी होज्या रामजी
पेट भरे खा पात |
जूझै बै जुझार सा
पडै जठ्यां तक पार |
कुण जाणे कुण जीत ले
कुण किण सें ज्या हार |
धान निमड्गो कोठले
खाली होग्या खेत |
सो-कीं खुटगो काळ में
बची भाग में रेत |
हीरा मोती निपजती
रेत निगळगी नाज |
काल जकी वरदान ही
बणगी आज सराप |
करसो रैगो कळपतो
मन में दरद दबा'र |
भैंत जीवणों हाथ हो
लेगी भूख भगा'र |
ऊंळै मन सूं भी कदे
नी देखै तू आय |
म्हारो मरुधर बादळी
नीं आयो के दाय |
दूर उडावै मिनख नै
खुद सांभळ नै डोर |
करै सो मरजी रामजी
उण रो कीं नी जोर |
बूंद न बरसी बरस में
री उडीक अणमेत |
कैतो डरपी काळ सूं
कै म्हांसूं नीं हेत |
दोनूं कानी लाग री
बारैं भीतर आग |
लूंठी लू री लाय सूं
घणी पेट री दाझ |
भूख मिटादे मिनख रै
आपस रो अपणेस ।
भूख दिखावै मिनख नै
अणचायो परदेस ।
पोळी बारैं नीमडी
नीचे टूटी खाट ।
धाप्यां कदे न नींद सूं
याद रवैला ठाठ ।
भूख बणादे मतलबी
भूख डिगादे नीत ।
दीठ बिसळज्या भूख सूं
भूखो करै अनीत ।
सुपना आवै सांच नी
आवै आळ पताळ ।
मरुधर तूठी मोकळी
पाणी पड्यो अचाळ ॥
राम रूसगो रूंख सूं
पान गया से सूख ।
छोडा बचगा बापडा
उणनै खागी भूख ॥
काळ मरण रो नांव है
काळ जेज री गाळ ।
भूख बिगाडै आज नै
आगम भेळै काळ ॥
रोटी खायां बीतगा
जाणै बरस पचास ।
मिनखां रै तन नीं रही
आज नाज री बास ॥
रुळगा सगळा रावळा
गया छोड सै गांव ।
तपो भलांई तावडो
छिटको सीळी छांव ॥
रोहीडा रा रूखडा
हुया झाळ सूं लाल ।
मरूधर आया काळ नै
जाणै रैया दकाल ॥
घेर घुमेरी खेजड्यां
बध्यो लूंग रो जाळ ।
म्हे पैली इ जाणगा
अबकै पडसी काळ ॥
ठोड ठांयचो छूटग्यो
छूट्यो प्यारो गांव ।
कूंळै मंडिया मोरिया
आंगण सीळीं छांव ॥
मरी बापडी चिडकली
मनस्या मर में लो'र ।
बरस बीतगा रेत में
न्हातां पाणी गे'र ॥
फूल खिले नी पांखाड़ी
लूवां रो रमझोळ ।
तुणको तक नी पांगरै
के प्राणां रो डोळ ॥
रळता, मिलता, बैठता,
करता मन री बात ।
चरभर बाजी खेलता
सै सुपना री बात ॥
घर में पाव न पीसणों
तिरस्या डांगर ढ़ोर ।
रूसी कुदरत कद मनै
माणख रो के जोर ॥
घणे कोड सूं बाछड़ो
पाळ्यो,बणगो बैल ।
पड्यो बेचणों भूख सूं
भाटो मन पर मेल ।।
पिणघट री रौनक गई
बापरगी सूनेड़।
जण-जण रै दुख सूं पडी
तालां मांय तरेड़ ॥
म्हैलां जगतो दीवलो
सारी सारी रात ।
पण फेरयूं भी रैंवती
आधी मन री बात ।।
काळ तनै अतरो कियां
इण मरूधर अपणेस |
बेगो पूठो बावड़ै
ज्यावै जे परदेस |
प्रीत हुई अब पांगळी
मतलब हुयो जावान |
धरम करम थोथा हुया
मूँगों धोबो धान |
मेल ऊंट पर गुदड़ा
हुया गाँव सूं भीर |
मूड मूड जोवै झूंपड़ा
भर्या नैण में नीर |
यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी|