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"काळ दर काळ / रामस्वरूप परेश" के अवतरणों में अंतर

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यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी |  
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मन में दरद दबा'र |
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लेगी भूख भगा'र |
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भूख मिटादे मिनख रै
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आपस रो अपणेस ।
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अणचायो परदेस ।
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नीचे टूटी खाट ।
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धाप्यां कदे न नींद सूं
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याद रवैला ठाठ ।
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भूख बणादे मतलबी
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भूख डिगादे नीत ।
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दीठ बिसळज्या भूख सूं
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भूखो करै अनीत ।
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सुपना आवै  सांच नी
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आवै आळ पताळ ।
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मरुधर तूठी मोकळी
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पाणी पड्यो अचाळ ॥
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राम रूसगो रूंख सूं
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पान गया से सूख ।
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छोडा बचगा बापडा
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उणनै खागी भूख ॥
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काळ मरण रो नांव है  
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काळ जेज री गाळ ।
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भूख बिगाडै आज नै
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आगम भेळै काळ ॥
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रोटी खायां बीतगा
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जाणै बरस पचास ।
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मिनखां रै तन नीं रही
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आज नाज री बास ॥
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रुळगा सगळा रावळा
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गया छोड सै गांव ।
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तपो भलांई तावडो
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छिटको सीळी छांव ॥
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रोहीडा रा रूखडा
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हुया झाळ सूं लाल ।
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मरूधर आया काळ नै
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जाणै रैया दकाल ॥
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घेर घुमेरी खेजड्यां
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बध्यो लूंग रो जाळ ।
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म्हे पैली इ जाणगा
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अबकै पडसी काळ ॥
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ठोड ठांयचो छूटग्यो
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छूट्यो प्यारो गांव ।
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कूंळै मंडिया मोरिया
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आंगण सीळीं छांव ॥
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मरी बापडी चिडकली
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मनस्या मर में लो'र ।
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बरस बीतगा रेत में
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न्हातां पाणी  गे'र ॥
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फूल खिले नी पांखाड़ी
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लूवां रो  रमझोळ ।
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तुणको तक नी पांगरै
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के प्राणां रो डोळ ॥
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रळता, मिलता, बैठता,
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करता मन री बात ।
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चरभर बाजी खेलता
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सै सुपना री बात ॥
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घर में पाव न पीसणों
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तिरस्या डांगर ढ़ोर ।
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रूसी कुदरत कद मनै
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माणख रो के जोर ॥
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घणे कोड सूं बाछड़ो
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पाळ्यो,बणगो बैल ।
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पड्यो बेचणों भूख सूं
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भाटो मन पर मेल ।।
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पिणघट री रौनक गई
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बापरगी  सूनेड़।
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जण-जण रै दुख सूं पडी
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तालां मांय तरेड़ ॥
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म्हैलां जगतो दीवलो
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सारी सारी रात ।
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पण फेरयूं भी रैंवती
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आधी मन री बात ।।
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काळ तनै अतरो कियां
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इण मरूधर अपणेस |
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बेगो पूठो बावड़ै
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ज्यावै जे परदेस |
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प्रीत हुई अब पांगळी
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मतलब हुयो जावान |
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धरम करम थोथा हुया
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मूँगों धोबो धान |
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मेल ऊंट पर गुदड़ा
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हुया गाँव सूं भीर |
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मूड मूड जोवै झूंपड़ा
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भर्या नैण में नीर |
 
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यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी|

13:31, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

थां सू पैली गज वदन
मूसक रै गल माल |
पोथी री अैई करे
दुरभिख में रिछपाल |

लम्बोदर लाजां मरां
किंया चढ़ावां भोग |
मूसक ताणी भी नहीं
दाणा के संयोग ?

माँ सुरसत वरदान दे
विनती बारम्बार |
बिथा बखाणूं काळ री
देतूं आखर च्यार |

हंस छोड़ मा आवजे
सुरसत सूनै गांव |
थारे उजले हंस नीं
पड़े काळ री छांव |

बालाजी रै देवरे
रात जगाता लोग |
संवत हो तो म्हे करां
सवामणी रो भोग |

जिण बाढ्या इक बाण सूं
रावण रा दस सीस |
नाम जप्यां जासी नहीं
काळ जको बिन सीस |

चिड़ी कमेडी कागला
गांव गया सै छोड़ |
विपदा में कुण साथ दे
सै ले मूंडो मोड़ |

फळसै ऊबी खेजड़ी
जोवे अै दरसाव |
मिनख बापड़ो हारज्या
काळ जीतले दाव |

आभै उमड़ी बादळी
पण पटकी नि छांट |
किस्या जलम री काढ़ ली
अनदाता सूं आंट |

बीज पडै जद कीं उगै
आ धरती री बाण |
बिन पाणी रै के करै
करै तो पाणी पाण |

हुवै लड़ाई जीत ले
मरुधर रा जूझार |
पण इणने कुण टाळदे
आ मालिक री मार |

खेत खळा सूना हुया
सूना हुया गुवाड़ |
नेह चूकगो नैण सूं
तोडै़ बधगी राड़ |

कद धरती रै आवसी
उणियारा पर ओप |
सीळो पड़सी कद बता
जबर काळ रो कोप |

धोरां हाळा देश में
पड़े कदे नी काळ |
हे मालिक अरदास है
आप करो रिछपाळ |

म्हारे मरुधर देस री
राम करो रिछपाल |
आवे नी नेड़े कदे
ताती बळती भाळ |

पगां चालती दीसरी
बा बड़कां री बात |
रोटी होज्या रामजी
पेट भरे खा पात |

जूझै बै जुझार सा
पडै जठ्यां तक पार |
कुण जाणे कुण जीत ले
कुण किण सें ज्या हार |

धान निमड्गो कोठले
खाली होग्या खेत |
सो-कीं खुटगो काळ में
बची भाग में रेत |

हीरा मोती निपजती
रेत निगळगी नाज |
काल जकी वरदान ही
बणगी आज सराप |

करसो रैगो कळपतो
मन में दरद दबा'र |
भैंत जीवणों हाथ हो
लेगी भूख भगा'र |

ऊंळै मन सूं भी कदे
नी देखै तू आय |
म्हारो मरुधर बादळी
नीं आयो के दाय |

दूर उडावै मिनख नै
खुद सांभळ नै डोर |
करै सो मरजी रामजी
उण रो कीं नी जोर |

बूंद न बरसी बरस में
री उडीक अणमेत |
कैतो डरपी काळ सूं
कै म्हांसूं नीं हेत |

दोनूं कानी लाग री
बारैं भीतर आग |
लूंठी लू री लाय सूं
घणी पेट री दाझ |

भूख मिटादे मिनख रै
आपस रो अपणेस ।
भूख दिखावै मिनख नै
अणचायो परदेस ।

पोळी बारैं नीमडी
नीचे टूटी खाट ।
धाप्यां कदे न नींद सूं
याद रवैला ठाठ ।

भूख बणादे मतलबी
भूख डिगादे नीत ।
दीठ बिसळज्या भूख सूं
भूखो करै अनीत ।

सुपना आवै सांच नी
आवै आळ पताळ ।
मरुधर तूठी मोकळी
पाणी पड्यो अचाळ ॥

राम रूसगो रूंख सूं
पान गया से सूख ।
छोडा बचगा बापडा
उणनै खागी भूख ॥

काळ मरण रो नांव है
काळ जेज री गाळ ।
भूख बिगाडै आज नै
आगम भेळै काळ ॥

रोटी खायां बीतगा
जाणै बरस पचास ।
मिनखां रै तन नीं रही
आज नाज री बास ॥

रुळगा सगळा रावळा
गया छोड सै गांव ।
तपो भलांई तावडो
छिटको सीळी छांव ॥

रोहीडा रा रूखडा
हुया झाळ सूं लाल ।
मरूधर आया काळ नै
जाणै रैया दकाल ॥

घेर घुमेरी खेजड्यां
बध्यो लूंग रो जाळ ।
म्हे पैली इ जाणगा
अबकै पडसी काळ ॥

ठोड ठांयचो छूटग्यो
छूट्यो प्यारो गांव ।
कूंळै मंडिया मोरिया
आंगण सीळीं छांव ॥

मरी बापडी चिडकली
मनस्या मर में लो'र ।
बरस बीतगा रेत में
न्हातां पाणी गे'र ॥

फूल खिले नी पांखाड़ी
लूवां रो रमझोळ ।
तुणको तक नी पांगरै
के प्राणां रो डोळ ॥


रळता, मिलता, बैठता,
करता मन री बात ।
चरभर बाजी खेलता
सै सुपना री बात ॥


घर में पाव न पीसणों
तिरस्या डांगर ढ़ोर ।
रूसी कुदरत कद मनै
माणख रो के जोर ॥

घणे कोड सूं बाछड़ो
पाळ्यो,बणगो बैल ।
पड्यो बेचणों भूख सूं
भाटो मन पर मेल ।।

पिणघट री रौनक गई
बापरगी सूनेड़।
जण-जण रै दुख सूं पडी
तालां मांय तरेड़ ॥

म्हैलां जगतो दीवलो
सारी सारी रात ।
पण फेरयूं भी रैंवती
आधी मन री बात ।।

काळ तनै अतरो कियां
इण मरूधर अपणेस |
बेगो पूठो बावड़ै
ज्यावै जे परदेस |

प्रीत हुई अब पांगळी
मतलब हुयो जावान |
धरम करम थोथा हुया
मूँगों धोबो धान |

मेल ऊंट पर गुदड़ा
हुया गाँव सूं भीर |
मूड मूड जोवै झूंपड़ा
भर्या नैण में नीर |





यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी|