भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गुन के गाहक / गिरिधर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिधर }} Category:कुण्डलियाँ गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लह...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
[[Category:कुण्डलियाँ]] | [[Category:कुण्डलियाँ]] | ||
− | + | गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय । | |
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय । | जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय । | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के । | कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के । | ||
− | बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक | + | बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके ॥ |
23:58, 6 नवम्बर 2007 के समय का अवतरण
गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन ।
दोऊ को इक रंग, काग सब भये अपावन ॥
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के ।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके ॥